एक बार मुनियों का एक समूह राजा दक्ष के घर पर यज्ञ करवा रहा था। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था।
जब राजा दक्ष आये, सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव जी खड़े नहीं हुए।भगवान शिव जी राजा दक्ष के जमाता थे। यह देखकर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए।दक्ष अपने दामाद शिव को हमेशा से निरादर भाव से देखते थे ।
सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में "बृहस्पति सर्व ब्रिहासनी " नामक यज्ञ का आयोजन किया था।
इस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया लेकिन जानबूझकर अपने जमाता और सती को उस यज्ञ में शामिल होने के लिए निमंत्रण नहीं भेजा था।जिससे भगवान शिव उस यज्ञ में शामिल नहीं हुए।
नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहाँ यज्ञ हो रहा है, लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है।
इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद जी ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहाँ जाने के विषय हुलावे की आवश्यकता नहीं होती है।जब सती अपने पिता के घर जाने लगी तब भगवान शिव ने मना कर दिया।लेकिन माता सती जिद्द पर अड़ गईं और शिव जी के रोकने पर भी जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गईं।
यज्ञ स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध करने लगी।इस पर राजा दक्ष ने भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें बोलने लगें ।
इस अपमान से पीड़ित हुई माता सती को अपने पिता के द्वारा अपने पति का अपमान सहन न कर पाई और वहीं यज्ञ अग्नि कुएं में कूदकर अपनि प्रजापति दे दी ।
भगवान शंकर जी को जब इस घटना का ज्ञात हुआ, तो वे क्रोध से भर उठे और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। चारों ओर प्रलय जैसा दृश्य उत्पन्न हो गया। महादेव की जटाओं से वीरभद्र का जन्म हुआ। शिव जी ने वीरभद्र को आदेश दिया कि वह राजा दक्ष की हत्या कर दे। वीरभद्र ने शिव जी के आदेश का पालन करते हुए राजा दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को भी शिव निंदा सुनने के लिए दंड दिया और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत होकर सभी देवता और ऋषिगण यज्ञ स्थल से भाग गए।
तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यग्द कुण्डं से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुखी होकर सम्पूर्ण भूमंडल पर भ्रमन करने लगे। भगवती माता सती ने अंतरिक्ष में शिव को दर्शन दिये और उन्होंने कहा कि जिस जिस थान पर उनके शरीर के खंड विभक्त होकर गिरेंगे वहां महाशक्ति पीट का निर्मान होगा।
सती का शब लेकर शिवजी पित्वी पर विच्रन करते हुए तान्डव नित्व करने लगे जिससे पित्वी पर प्रलाय की इस्तिति उत्पन होने लगी।पृथ्वी समेत तीनों लोको को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय विनय पर भगवान विष्णु सुदइस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्मान हुआ। इन 51 शक्तिपीठों में से एक प्रमुक शक्तिपीठ कामक्या मंदिर को माना जाता है।यही वह स्थान है जहां माता सती का योनी भाग गिरा था, इसलिए 51 शक्ति पीठों में से कामक्या मंदिर को सबसे शक्ति चाली पीठ माना जाता है।
भारत एक ऐसा देश है जहां परंपरा और आधुनीकीकरण साथ साथ चलते हैं। असम के कामाख्या मंदिर में मनाई जाने वाली अम्बुवाची मेला एक अनोखा उत्सव है जो नारी की शक्ति और सिजन को दर्शाता है।यह मेला देवी कामक्या के मासिक धर्म के प्रतिक के रूप में मनाया जाता है, लेकिन जिस चीज को इस मेले में देवी का चमत्कार माना जाता है, वही आज की महिलाओं के लिए एक शर्म या अपवित्र चीज बन कर रह गई है।
कामाख्या भारत का एकमात्र ऐसा देवी मंदिर है जहाँ माता को वर्ष में तीन दिनों तक मासिक धर्म होता है। इस अवधि के दौरान आसपास की नदियों और तालाबों का पानी भी खून की तरह लाल हो जाता है। इस मंदिर में माता की मूर्ति की बजाय उनकी योनि की पूजा की जाती है। कामाख्या मंदिर को वशीकरण, काला जादू और तंत्र-मंत्र करने वाले तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। इस मंदिर का सबसे रहस्यमय पहलू है — अम्बुबाची मेला।हर वर्ष जून के महिने में यहां देवी का मासिक धर्म मनाया जाता है और मंदिर के गर्वग्रिह से रक्त बहता है। यह घटना तीन दिन तक चलती है। तब तक मंदिर के दर्वाजे बंद रहते हैं। चौथे दिन भक्तों को दर्शन के लिए मंदिर के द्वार खोले जाते हैं।इस जगह पर पूरे देश के तान्त्रिकों का मेला लगता है। माना जाता है कि इस जगह मानव बली दी जाती थी। प्राचिन परंपरा के अनुसार मंदिर के कपाट खुलने तक हर दिन एक पशु की बलि दी जाती है ।चौथे दिन भक्तों को प्रसाद के रूप में एक लाल कपरे का टुकडा दिया जाता है। खुलने तक हर दिन एक पशू की बली दी जाती है।
अनेक ग्रामीण व अर्धशहरी इलाकों में आज भी पीरियड्स से जूड़ी कई धारणाएँ प्रचलित हैं - जैसे की इस समय खाना नहीं बनाना चाहिए, पौधे को नहीं चूना चाहिए, मंदिर नहीं जाना चाहिए।कुछ लोग इसे टोटका या काला जादु से जोड़ देते हैं । महिलाएँ खुद को दोशी समझती है और चुपचप इन नियमों का पालन करती हैं । मासिक धर्म के रप्त या उत्से जूरी वस्तुओं का उप्योग विभिन्न टोटकों में किये जाने की बाते भी लोककताओं और अन्धविश्वासों का हिस्सा रही है ।कुछ लोग इसे नकारात्मक शक्तियों को दूर करने या वशीकरण जैसे कार्यों के लिए इस्तिमाल करने का दावा करते हैं, जिसका कोई वेज्ञानिक आधार नहीं है।
कुछ समाजों में ये भी माना जाता है कि मासिक धर्म के दोरान महिलाएं नकारात्मक उर्जाओं और 'काला जादू' के प्रती अधिक संवेदनशील होती हैं ,या उनके द्वारा किसी को 'नजर' लग सकती है. ये डर अक्सर महिलाओं को और अधिक अलग - थलग कर देता है ।अज्ञानता और मासिक धर्म की वेज्ञानिक समझ की कमी से उपजे हैं । अम्बुवाची मेले में जहां मासिक धर्म को स्रीजन की शक्ति से जोड़ा जाता है वही इन अन्धविश्वासों में इसे भय और नकारात्मकता का स्रोत बना दिया गया है।
अम्बुवाची मेला में हमें यह सिखाता है कि पीरियड्स कोई कमजोरी नहीं, ब्लकि शक्ति का प्रतीक है।माॅ कामख्या की पूजा का मतलब ये नहीं होना चाहिए कि केवल देवी के रूप में पीरियड्स को सम्मान मिले, बल्कि हर स्री को भी वही आदर मिलना चाहिए।अम्बुवाची मेला एक अपसर है इस बात को समझने का कि जो चीज़ हम देवी के लिए पूजनीय मानते हैं, वही आम महिलाओं के लिए वर्जित क्यों? यदि हम इस परंपरा को सही मायनों में अपनाएँ तो हमें अपनी सोच में बदलाव लाना होगा, ताकि हर स्त्री को पीरियड्स के दोरान भी सम्मान, सहानुभूति, और समझ मिले।